सिंधुदुर्ग किला - समंदर के बीच आज भी बडी शानसे खडा है यह किला

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सिंधुदुर्ग किला महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले मे मालवण के पास अरब सागर मे स्थित है !  सण 25 नोव्हेंबर 1664 तारीख को छत्रपती शिवाजी महाराज द्वारा इस जलदुर्ग के निर्माण की शुरुवात की गयी थी, जिसे बनाने मे तीन साल लग गये थे !

सिंधुदुर्ग किले का महत्व :
छत्रपती शिवाजी महाराज के आरमार ( समुद्री जहाजोंका बडा मेला ) मे इस किले का बडा महत्वपुर्ण था !  इस किले का क्षेत्र 48 एकड मे कुरटे द्वीप पर  फैला हुआ है ! तट 2 मील लंबा, तटोंकी उंचाई 30 फुट और चौडाई 12 फुट  है. तटबंद को जगहो जगहोंपर मजबुत ऐसे 22 आधारशिलाये ( बुरुज ) है ! इन तट आधारशिलाओंके अगल बगल मे नुकिले पत्थर है तथा किले के भीतर ४५ पत्थरोंसे बनी सिढीया है ! पश्चिम और दक्षिण की ओर अथांग सागर फैला हुआ है ! पश्चिम और दक्षिण के ओर तटोंके निर्माण मे 500 खंडी शिसा इस्तमाल किया गया है ! इस तटोंकी निर्माण के लिये 80 हजार होन की लागत लगी !  इस किले पर शिवकालिन 3 मीठे पानी के कुएँ हैं ! जिन्हें दूध कुआ, शक्कर कुआ तथा दही कुआ नाम दिया गया है !  किले के बाहर खारा पानी और किले के अंदर मीठा पानी यह एक कुदरत का करिश्मा ही है !संपूर्ण महाराष्ट्र मे सिर्फ इसी किले मे शिव भगवान स्वरुप छत्रपती शिवाजी महाराज का एकमात्र मंदिर है। जिसकी स्थापना राजाराम महाराज ने की थी ! 



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इतिहास मे सिंधुदुर्ग किले ( मालवण का जंजिरा ) को छत्रपती शिवाजी महाराज के आरमार दल ( नौसेना ) का प्रथमस्थान माना जाता है ! छत्रपती शिवाजी महाराज के पास 362 किले थे जिनका विस्तार पुरब मे विजापूर, दक्षिण मे हुबली, पश्चिम मे अरब सागर और उत्तर मे खानदेश वऱ्हाड प्रदेश तक था ! जमीन से सटे हुये किले तथा पहाडो पे स्थित किलो के साथ साथ दुश्मन के समुद्र मार्ग से होने वाले हमलो को परास्त करने के लिये जलदुर्ग का निर्माण महत्वपूर्ण है, यह जाणकर ही छत्रपती शिवाजी महाराज ने जलदुर्ग का निर्माण किया ! बेहतरीन, मजबुत और सुरक्षित जगहोंकी खोज करके समुद्र के किनारोंकी पुष्टी की गयी ! इसी बीच सण 1664 साल मे मालवण के पास कुरटे द्वीप के पथरिले जगह को किले के लिये चुना गया ! महाराज के हाथोंसे इस किले के तटोंका भुमीपुजन किया गया ! आज यही जगह मोरया पत्थर के नाम से प्रसिद्ध है ! एक पत्थर पे गणेशमुर्ती एक पे सुर्याकृती और दुसरे पे चंद्रकृती मुद्रीत करके महाराज ने पुजा की ! ऐसा कहा जाता है इस किले के संपूर्ण निर्माण को तीन साल लग गये और एक कोटी होन की लागत लगी ! जिन चार मच्छुआरोने इस किले के निर्माण के लिये यह उचित जगह की पुष्टि की उनको इनाम मे गाव दिये गये ! ऐतिहासिक सौंदर्य से सुशोभित सिंधुदुर्ग किला जिस पथरिले कुरटे द्वीपपर स्थित है वह मालवण से लगभग आधा मील समुद्र के अंदर है ! 



 शिवकालीन चित्रगुप्त अपने बखर मे इस बारे मे एक लेख सुचित किया है :  "'चौर्‍याऐंशी बंदरात हा जंजीरा,अठरा टोपीकरांचे उरावर शिवलंका,अजिंक्य जागा निर्माण केला । सिंधुदुर्ग जंजीरा,जगी अस्मान तारा । जैसे मंदिराचे मंडन,श्रीतुलसी वृंदावन, राज्याचा भूषण अलंकार । चतुर्दश महारत्नापैकीच पंधरावे रत्न, महाराजांस प्राप्त जाहले ।"

भारत सरकारने इस किले को दिनांक २१ जून, इ.स. २०१० के दिन महाराष्ट्र का राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
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