SAPTASHRUNGI MATA – VANI

वणी की सप्तश्रृंगी माता – आधा शक्तिपीठ 

( SAPTASHRUNGI MATA – VANI )


SAPTASHRUNGI MATA

साडेतीन प्रमुख शक्तिपीठोमेंसे नाशिक जिल्हे के वणी के सप्तश्रृंगी माता ( Saptashrungi Mata ) को आधा पीठ माना गया है ! सप्तश्रृंगी निवासिनी, सप्तश्रृंगी माता, ब्रह्मस्वरूपिणी ऐसे कई नामोंसे उन्हे जाना जाता है ! सप्तश्रृंग का मतलब है सात परबत शिखर ऐसा होता है ! सह्याद्रीके परबत श्रृंखलाओमेसे सात चोटियोंपर इस महामाया का स्थान है ! देश के ५१ शक्तिपीठोन्मेसे एक स्थान ऐसा वर्णन देवी भागवत किया गया है ! 

सती का अग्नी मे जला हुआ शरीर लेकर जब महादेव दरदर भटक रहे थे तब उसमेंसे दाया हाथ इस पर्वत पे गिरा ऐसा माना जाता है ! वैसेही ओंकार मे का आकार, उकार और मकार मतलब तीन शक्तिपीठे तथा मकार ( आधा मंत्र ) यानी के सप्तश्रृंगीकी जगह ऐसा माना जाता है ! महिषासुर राक्षस का वध करने के बाद देवी इस परबत पर आराम करने के लिये आयी ऐसी समझ है ! देवीने मार गिराये महिषासुर का सिर यानी भैसे कामुख मंदीर जिस परबत पर है उसके सतह के पत्थरोन्मे खुदा ( तराशा ) हुआ है ! ब्रम्हदेव के कमंडलुमेंसे देवी प्रगट हुयी और उसने दुर्गा का अवतार लिया ऐसा पुराणोमे देखने को मिलता है ! उससे ही उसको ब्रह्मस्वरूपिणी से पहचाना जाता है ! 

देवी का पहाडपर का मंदीर दो मंजिलोंका है और देवी दुसरे मंजिलपर है ! ८ फीट की इस मुर्तींको अठरा हाथ है और उन हाथोन्मे अलग अलग हथियार है ! त्रिशूल, सुदर्शन, शंख, धनुष्यबाण, वज्र, घंटा, अग्नी ज्वाला, दंड, अक्षमाळा, कमंडलू, सूर्यकिरणे, तलवार, ढाल, परशु, पानपत्र, कणीस, कमल पाश उनके हाथो मे है ! मुर्ती स्वयंभु है ! मंदिर मे चैत्रोत्सव, नवरात्र, विजयादशमी यह बडे त्योहार मनाये जाते है और देशभर से भक्तजन इस समय देवीके दर्शन के लिये आते है ! 

रामायण मे भी इस किले का जिक्र आता है, दंडकारण्य का हिस्सा रह चुके इस पहाडपर लक्ष्मण जब लडाई मे बेहोश हो गये थे तब नको फिर से जगाने के लिये हनुमानजी इसी पहाड से संजीवनी वनस्पती ले गये थे ऐसी भी समझ है ! 

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