HARIDWAR–INDIA

हरिद्वार – भारत का तीर्थक्षेत्र ( HARIDWAR–INDIA )


HARIDWAR

हरिद्वारको भारत ( Haridwaar – India ) के तीर्थस्थानोमे सातवा स्थान दिया गया है ! चीनी तीर्थयात्री ह्यु एन त्सग जब भारत मे आये थे तब उन्होने हरिद्वार को मयुर नाम से बुलाया था ! यह शहर गंगा नदी की तट पर स्थित है ! इश्वर का द्वार माना जानेवाला हरिद्वार मोक्ष मिलने का द्वार है ऐसी भारतीय लोगोंकी श्रद्धा है ! हर एक जन गंगा नदी मे स्नान करके अपने पापोंसे मुक्ती पाना चाहता है ! आज भी लोग श्रद्धा, आस्था और विश्वास से हरिद्वार जाते है ! धार्मिक स्थल के साथ साथ हरिद्वार चार धामो मे से एक धाम माना जाता है ! पौराणिक कथा अनुसार भागीरथी ने अपने पुर्वजोंको जिवित करने के लिये तपश्चर्या की थी ! आखिर भगवान शिव के जटाओ मे से गंगा का उगम हुआ ! उस वजह से राजाके ६० हजार पुत्रोंका पुनर्जन्म हुआ ! उसके बाद हरिद्वार को देश के सात पवित्र स्थानो मे समाविष्ट किया गया ! 

ईश्वर  की इस नगरी मे चारो तरफ फैली हुयी कुदरत की सुंदरता और सुगंध भक्तोंको आकर्षित करती है ! गुलाबोंकी सुगंध से भरा पानी और शाम को होनेवाली आरती आंखोन्मे समा जाती है ! हरिद्वार मे बहोत सारे मंदीर है ! मनसा देवी मंदिर, चंद्रा देवी मंदिर और दक्ष महादेव मंदिर, यहा राजा यक्ष ने यज्ञ किया था ! मगर उस यज्ञ मे शिव जी को नही बुलाया था इससे नाराज शिव जी ने यक्ष को मार दिया था मगर उसके बाद ही स्वयम भगवान ने ही उनको जिवित किया था ! हरिद्वार जाकर अगर सकत आश्रम और सकत सरोवर के दर्शन नही लिये तो यह यात्रा अधुरी रह जाती है ! सकत सरोवर याने जहासे गंगा नदी सात छोटी छोटी नदीयो मे बट जाती है ! लोगोंके कहे अनुसार इसके पिछे भी एक कहानी सुनायी जाती है एक बार सात ऋषि एकसाथ तपस्या कर रहे थे और गंगा नदी को आगे की ओर बहना था ! मगर उनकी तपस्या भंग ना हो इसलिये गंगा नदी सात अलग अलग सहायक नदीयोंके प्रवाह मे बहने लगी ! 

हरिद्वार की शाम भी बहोत मोहक और पवित्र होती है ! सुरज ढलते ही लोग ' हर की पौडी ' के पास जमा होते है ! राजा विक्रमादित्य ने अपने भाईयोंके याद मे यह बनवायी थी ! शाम को सात बजे के बाद का वातावरण मंत्रोंसे अभिभुत होता है ! चार ही दिशाओमे कई दिये जलते है कुछ लोग मंत्रोंचार करते है तो कुछ इस मदहोश माहौल मे खो जाते है ! यह मंत्र समाप्त होते ही कई दिये गंगा नदी मे तैरते दिखाई देते है ! ऐसा कहा जाता है अमृत को पाने के लिये देवता और दानवो ने समुद्र मंथन किया था तब उसमेसे निकलने वाले अमृत से अमर होने की दोनोंकी इच्छा थी ! मगर धन्वंतरी जब अमृत का कलश लेके भाग गया तब देवो और दानवो मे झगडा हो गया ! उस दर्मियान अमृत की कलश से चार बुंद धरती पर गिर गये ! उसमेंसे ही चार धाम हरिद्वार, प्रयाग, नाशिक और उज्जैन का निर्माण हुआ ! इन जगहोंपर १२ सालमे एकबार कुंभमेला और हर साल अर्धकुंभमेला लगता है ! ऐसा कहा जाता है इस मेले के दर्मियान कोई अगर गंगा मे डुबकी लगाता है तो उसके सारे पाप धुल जाते है ! 

हरिद्वार जाने के लिये किसी वजह की जरुरत नही होती, मन की शांती के लिये भी जा सकते है ! यह भगवान का द्वार है यहा पुण्य के साथ साथ आत्मिक शांती भी मिलती है और शाम के आरती के दियोंके साथ साथ अपना जीवन भी जगमगाता है ! जीवन का अंधकार इन दियोंकी रोशनी से दुर हो जाता है ! कुछ समय के लिये क्यो न हो इंसान के अंदर का सच्चा इंसान जागृत हो जाता है ! 

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