केदारनाथ – आधा ज्योतिर्लिंग ( KEDARNATH – HALF JYOTIRLINGA ( INDIA ))
हिमालय ( Himalay ) की चारधाम ( Chardham ) तीर्थक्षेत्रो मे से केदारनाथ ( Kedarnath ) एक महत्वपुर्ण तीर्थक्षेत्र है ! भारत के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगो मे से एक ज्योतिर्लिंग होने के बावजुद ये पुरा नही तो आधा ज्योतिर्लिंग है ! हृषिकेश से २०९ किलोमीटर की दुरीपर बसा यह क्षेत्र करीबन ३५३८ मीटर की उंचाई पर है ! तल से १४ किलोमीटर की चढाण चढनी पडती है, ये सफर पैदल तथा दंडी, कंडी, डोली या घोडे से भी कर सकते है ! हृषिकेश से थोडी दुरीपर जाने पर निरंतर तेढे मेढे घाटोंसे यह सफर शुरु होता है ! एक तरफ गहरी खाई और दुसरी ओर उंचे उंचे पर्वतशिखरो मे से गुजरने वाला यह रस्ता दिल धडकन बढा देता है ! मगर यहा की अजीब अनजानी फुलोंकी सुगंध, झरने और बहने वाले नदी नाले सफर खुशनुमा बना देते है !
हृषिकेशसे देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, तिलवाडा, अगस्तमुनी, गुप्तकाशी, मुंडकटा गणेश, सोनप्रयाग, गौरीकुंड और केदार ऐसा ये सफर ! सोनप्रयाग से गौरीकुंड यह पांच किलोमीटर का सफर संकीर्ण और खुबसुरत रास्ते से मंदाकीनी नदी के किनारेसे गुजरता है ! गौरीकुंड जहा पार्वतीने तप किया था यहा शंकर पार्वती की धातु की मुर्तीया तथा गरम पानी के कुंड भी है ! गौरीकुंड के यहा ही जादा सामान रखने की व्यवस्था है, यहासे जरुरी सामान जैसे गरम कपडे, आवश्यक दवाईया और बॅटरी छोटेसे बॅग मे लेकर केदार की चढान चढने की शुरुवात होती है ! संपुर्ण सफर मे हरीयालीसे सजे पहाड और झरने दिखायी देते है ! साधारण ६ किलोमीटर पर रामबाडा यह ठिकाण है जहा गरमागरम चाय और नाष्टे का प्रबंध हो सकता है ! बहोत ही थंड और किसीभी वक्त जोरोंसे गिरनेवाली बारीश तथा जोरोंसे बहने वाला मंदाकिनी नदीका प्रवाह हमेशा साथ होता है ! रामबाडा से साधारण किलोमीटर जाने के बाद गरुड चट्टी यह ठिकाण आता है यहा से पुरा सफर सपाट रास्ते से ही होता है ! लकडी पुल पार करने के बाद गांव लगता है और इस गांव की दुसरी छोर पे बसा है केदारेश्वर का अतिप्राचीन भव्य मंदीर !
चबुतरा चढने के बाद फरसबंदी प्राकार है, प्रवेशद्वार पे ही बडी घंटा टंगी हुयी है और थोडा आगे जाते ही आती है नंदी की बडी मुर्ती ! दु तरफा उतरते छप्परवाला यह मंदीर पांडवकालीन है कहा जाता है ! मंदीर के मुख्य जगह के उपर ब्रम्ही तरह का शिखर है, यहा कोई शिवलिंग नही है, है तो बस बडी पत्थर की शिला ! कमर के इतनी उंचाई वाली इस जगह मे अंधेरा है मगर तेल घी के दिये हमेशा जलते रहते है ! सभामंडप मे पांडव, कुंती, द्रौपदी की मुर्तीया है ! यहा शिव जी को अभिषेक की तौर पर घी लगया जाता है ! बहोत थंड की वजह से यहा भक्तोंको बिना स्नान किये दर्शन लेने की इजाजत दी गयी है !
इस जगह की कथा ऐसी सुनायी जाती है की महाभारत युद्ध के दर्मियान पांडवोंसे कई ब्राम्हणोंकी हत्या हो गयी थी उसका पाप उनको लग गया था ! स्वर्ग प्राप्ती के लिये यह सबसे बडी मुसिबत बन गयी थी फिर शिव जी की उपासना करके इस शाप से उभरने की सलाह किसीने पांडवोंको दी ! शिव जी को इस बात का पता चलते ही वो गुप्त हो गये तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा की केदार पर्वत पे वो तुम्हे पशु के रूप मे दिखेंगे ! उनको पहचान ने के लिये वहांके सारे भैसे भीम के पांव के बिच मे से गुजारने होंगे अगर शंकर भगवान होंगे तो वह भीम के पांव के बिच मे से नही जायेंगे ! पांडवोने उनके कहने के मुताबिक किया, शंकर रूप मे भैसा जब भीम के पांव मे से गुजर रहा था तब पांडवोने उन्हे पहचान लिया फिर भीम ने उसकी पुंछ पकड के खिंच ली तब तक शंकररुपी भैसे का आधा हिस्सा नेपाल पहुंच गया था ! नेपाल का पशुपतीनाथ ये वही है, केदारनाथ ये पुंछ की तरफ का हिस्सा इस वजह से यहा शिवलिंग आधा है बचा हुआ आधा पशुपतीनाथ मे है ! बारह ज्योतिर्लिंगोंकी यात्रा करते समय इस दोनो जगह का दर्शन लेना पडता है !
अक्षयतृतीया के दिन यह केदार का मंदीर खुलता है और भाईदुज के दिन यह बंद हो जाता है क्योंकी यहा बाद मे पुरा बरफ रहता है ! मंदीर की जगह १२ हजार फीट उंचाई पर रहने के वजह से काफी समय यहा हाई अल्टीट्युट की तकलिफ झेलनी पडती है ! चक्कर आना, भुख न लगना, पेट बिघडना इस तरह की तकलिफे प्राणवायु की कमी के वजह से निर्माण होती है ! इस वजह से इस तरह की खबरदारी लेना आवश्यक है मगर फिर भी केदार की यात्रा से चुकना नही चाहिये ! इस लिये वहा एक दिन रुकना बेहतर होगा, रहणे खाने के अच्छे इंतजामात है फिर भी उसमे मंदीर के बाहर टपरी पे मिलने वाली आलू की टिक्की और गुलाबजामुन का स्वाद तो चखना ही चाहिये !
केदार की राहपर गुप्त काशी करके जो जगह है वो है काशी विश्वेश्वर यह दुसरा स्थान ! मंदाकिनी के दोनो तट पे बसे उखीमठ और गुप्त काशी से दिखनेवाली चौखंबा हिमशिखर नेत्रसुखद है ! सुबह जब उनके उपर सुरज की किरणे पडती है तो वह सोने जैसी चमकती है ! गुप्तकाशीमे विश्वेश्वर मंदीर और मनकर्णिका कुंड है और इस कुंड मे गंगा और यमुना नदीका पानी आता है ! यहा ही अर्जुन ने भिल्लरुपी शंकर भगवान से युद्ध कर पशुपतास्त्र हासिल किया था ! यहा गुप्तदान का बडा महत्व है उसी तरह अर्धनारीनटेश्वर मंदीर भी देखने योग्य है !
गौरीकुंड से महज देढ किलोमीटर पे मुंडकटा गणेश है ! जब पार्वती स्नान करने गयी थी तब उन्होने दरवाजे पर रखवाली के लिये मैल से बना गणेश बिठाया ! शंकर जी आये तो भी गणेश उनको अंदर प्रवेश करने से मना किया और गुस्सेमे उन्होने गणेश का सिर उडा दिया ! पार्वती के शोक के बाद उसे हाथी का सिर लगाके जिवित किया गया ऐसी यहा की कथा ! यहा के गणेश मंदीर के मुर्ती को सिर नही है ! यहा से तीन किलोमीटर की दुरीपर बसा है त्रिजुगी नारायण ! सफेद गुलाबोंकी खुशबु भरी इस राह के मंदीर मे विष्णु, भुदेवी और श्रीदेवी की मुर्तीया है ! और उसके परिसर मे है निरंतर जलने वाला होम यह होम शिवपार्वतीके शादी के समय जलाया गया था ऐसा कहते है !
हृषिकेश से निकलते ही तिलवाडा मे रहना और सुबह मे ही केदारनाथ ( Kedarnath ) के लिये निकलना यह अच्छा विकल्प है ! केदारनाथ की चढाई पैदल करने के लिये आंठ से दस घंटे लगते है और घोडा, दंडी या डोली से सफर करने के लिये पांच से छह घंटे लगते है ! हालांकि यह यात्रा बडी मुश्किल और कठिन है मगर यह यात्रा जब भी संभव हो तब करनी चाहिये !
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