SHREE BHARADIDEVI MATA-ANGANEWADI

आंगणेवाडी की श्री भराडीदेवी माता ( SHREE BHARADIDEVI MATA - ANGANEWADI SINDHUDURG )



SHREE BHARADIDEVI MATA
SHREE BHARADIDEVI ANGANEWADI

आंगणेवाडी का श्री भराडीदेवी का मंदिर सिंधुदुर्ग जिले का एक जागृत देवस्थान माना जाता है ! मालवण से करीब १५ किलोमीटर की दुरीपर श्री भराडीदेवीका मेला लगता है ! भक्तोंके आवाज पर दौडी चली आनेवाली और उनकी मन्नत पुरी करनेवाली ऐसी उसकी ख्याती सिर्फ दक्षिण कोकण मे ही नही तो पश्चिम महाराष्ट्र मे भी फैली हुयी है ! इन सब जगहों के भक्त बडी उत्साह से इस मेले का इंतजार करते है, यह मेला सिर्फ दो दिन का होता है ! 

बहोत साल पहले पेशवा के दरबार मे आंगणेवाडी का एक देशभक्त था ! वह बहोत ही पराक्रमी था उसकी देशसेवासे प्रसन्न होकर माता तुलजाभवानी एक दिन इस भारड ( बहोत दुर तक फैली खाली जगह ) जगह मे प्रगट हुयी ! एक दिन उसने देखा उसकी गाय एक झाडी के किनारे दुध छोड रही है ! उसी रात माता तुलजाभवानी ने उसके सपनों मे आके दृष्टांत दिया की वह उस जगह प्रगट हुयी है ! दुसरे दिन उसने उस जगह की सफाई करके वहाँ के शिला की विधी के अनुसार पुजा की ! इस जागृत देवी की पूजाअर्चा करने के लिये पेशवा काल मे चिमाजी अप्पा ने कुछ एकर जमीन दान मे दे दी ! इस जमीन से मिलने वाले उत्पन्न से देवीकी पूजाअर्चा और बाकी खर्चे किये जाते है ! 

देवदिवाली के दुसरे दिन मंदीर मे गांववालों के लिये खाना ( दालप ) होता है ! उसके बाद सुअर की शिकार के लिये देवी से अनुमती ( कौल ) ली जाती है ! शिकार मिलने के बाद उसे संगीत के साथ बजाते हुये मंदिर मे लाया जाता है ! फिर देवी से मेले के लिये अनुमती ली जाती है, इसी तरह मेले की तारीख तय की जाती है ! फिर कितनी भी बडी मुश्किल क्यों न आये फिर भी यह तारीख बदल नही सकते ! मेले के दिन यह उत्सवमूर्ती सजाई जाती है, उसकी प्राणप्रतिष्ठा की जाती है फिर आईना दिखाया जाता है ! आईना दिखाने की वजह यह बताते है की देवी की प्रतिमा ( फोटो )  ज्यादातर निकाली नही जाती और घरमे देवी की प्रतिमा लगायी हो तो बडे पत्थोंका पालन करना पडता है यदि ऐसा ना हो तो घर के लोगोंको तकलीफ सहनी पडती है !

देवदिवाली से मेले के बाद प्रसाद बांटने तक या समय लगा तो होलीतक देवी से अनुमती ( कौल ) नही मिलती ! अनुमती लेने के लिये चावल ( अक्षता ) का इस्तेमाल किया जाता है ! अनुमती ( कौल ) सिर्फ देवी के काम के संदर्भ मे ही ली जाती है ! यह अवसर साल मे दो बार आता है और यह एक से दो मिनिट तक का ही होता है ! मेले की सुबह मेला मंजुर हो गया ऐसा बताके निकल जाता है ! 


SHREE BHARADIDEVI MATA aanganewadi


मेले के दिन सुर्योदय के बाद नाई बंधु आईने से सुरज की रोशनी देवी के मुखमंडल पे गिराते है ! तब प्रारंभ की पुजा करके मेले की शुरुवात की जाती है ! मेले के दिन श्री भराडीदेवी के स्वयंभु शिला पे मुखौटा लगाकर साडीचोली पहनायी जाती है, देवी को गहणे जेवर भी चढाये जाते है ! सुबह से ओटी भरने का कार्यक्रम चालू हो जाता है जो शाम ८ बजे तक चलता है ! रात ९ बजे यह कार्यक्रम बंद होने के बाद आंगणेवाडी के हर घर की महिला स्नान करके किसीसे भी कुछ बात न करते हुये खाना बनाना चालू करती है ! यह प्रसाद रात मे देवी को नैवेद्य के रूप मे चढाया जाता है ! इसे ही थाली लगाना ऐसा भी कहते है, इस प्रसाद मे चावल, सब्जी, वडा और सांबार का समावेश होता है ! उन महिलाओंके साथ आंगणे पुरुष भी हाथो मे मशाल जलाये उनको भीड मे से राह दिखाते रहते है ! 

इस मेले मे आनेवाले लाखो भक्तोंकी सेवा करना मतलब श्री भराडीदेवी की भक्ती करना ऐसा आंगणेवाडीकर मानते है ! आंगणेवाडी के गांववाले और आंगणेवाडी के मुंबई मे नोकरी करने वाले ऐसे १ हजार लोग मेले के दो दिन पहले से और दो दिन बाद भी दिनरात मेहनत करते है ! वह अनुशासन के साथ मेले का नियोजन करते है ! भक्तोंको सुखसुविधा प्रदान करने के लिये सभी गांववाले और शासकिय यंत्रणा इनकी सहायता से उत्सव शांती के साथ समाप्त किया जाता है ! 

आज २१ वी सदी मे प्रवेश करते समय मसुरे गांव की एक छोटीसी वाडी - आंगणेवाडी भराडीमाताके दर्शन के लिये आनेवाले लाखो भक्तोंके उसीतरह मुख्यमंत्री और बाकी मंत्रीमहोदयोंकी वजह से प्रतिपंढरपुर लगने लगी है ! आंगणेवाडी मेले मे आनेवाले भक्तो मे कुछ लोग भक्तिभाव से दर्शन लेते है तो कुछ लोग मन्नत मांगणे आते है और कुछ मन्नत पुरी होने पर उसका भुगतान करने आते है ! मगर इन तीनों तरह के बच्चे बुढे स्त्री-पुरुष भक्तोंकी बहोत भीड बडी श्रद्धा से होती है वह सिर्फ देवी के कृपा आशीर्वाद के लिये ! ऐसे इस श्री देवी भराडीमाता के चरणों मे शत शत प्रणाम ! 

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