शांत निला पानी, मुलायम सफेद रेत और खुबसुरत वनस्पतिया हर साल ८ लाख से भी ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करती है ! पर इनमे से ज्यादातर पर्यटक इस बात से अंजान है की वे प्रति दिन ४ किलो ग्रॅम से भी ज्यादा कचरे का निर्माण करते थे !
थिलफुशी शुरुआत के दिनो में एक उथले प्रवाल भित्तियों से बनी खाडी थी ! माले सरकार मे सन १९९२ मे समृद्ध पर्यटन उद्योग द्वारा उत्पादित विशाल कचरे का निर्मुलन करने के लिए बॅरिअर द्वीपों का उपयोग करने का अंतिम निर्णय लिया था जिन्हे बकवास द्वीप ( Rubbish Island ) के नाम से जाना जाता है ! शुरुआत मे बड़े पैमाने पर कचरा माल के रूप में पर्यटकोंसे प्राप्त करना शुरू हुआ, जिसके लिए प्रवासी श्रमिकों को कचरा उत्खनन और कचरा को संभालने के लिए भुगतान किया जाने लगा था ! लगभग कुछ २० सालों के बाद इस मानव निर्मित "द्वीप" पर रोज़ाना ३३० टन कचरे का निर्माण होने लगा जिसकी वजह से यह २४ घंटो मे १ वर्ग मीटर की दर से बढने लगा था !
नयी विकसित की गयी ये जमीन जल्द ही उद्यमियों को भाडे पर दी गई जिसकी वजह से इस द्वीप का इस्तेमाल विभिन्न औद्योगिक गतिविधियों के लिए किया जाने लगा था ! इस वजह से इस द्वीप को बेतरतीब कचरे से सामना करना पड़ा था ! जिसकी वजह से इस घृणित क्षेत्र मे मक्खियों संख्या काफी अतिरिक्त होने लगी थी लेकिन यह द्वीप की सबसे बड़ी समस्या नहीं थी ! अंधाधुंध डंपिंग के साथ वाणिज्यिक गतिविधियो तथा टूटी हुई तेल ड्रम, एस्बेस्टोस, सीसा और अन्य हानिकारक धातुओं ने इस खाडी मे विषाक्त पदार्थों की बहुतायत लाई थी ! दैनिक घरेलू कचरा और वस्तुओं के साथ यह एक हानिकारक कीचड़ बन गया था ! इसके चलते इस द्वीप के आसपास की थोडी जगह के पानी मे हानिकारक पदार्थ घुल गए थे और जलाए जा रहे कचरे की वजह से यहा की हवा प्रदुषित हो गई थी !
सन २०११ मे यहां की सरकार ने इन द्वीपोंपर कचरा डंपिंग को गैरकानुनी घोषित कर दिया ! जिसकी वजह से कई मालवाहक जहाज तथा कचरा वाहक जहाज जो अपने लोड को डंपिंग प्रक्रिया के साथ अधीर होकर सीधे समुद्र में डाल दिया करते थे उन्हे अब कथित तौर पर उनके व्यापार को भारत में ले जाने की सलाह दी गई है !
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