तेलंगणा के आदिलाबाद के बासर गांव का ज्ञान सरस्वती मंदिर कई तरहोंसे अनोखा है ! यह भारत के दो सरस्वती मंदिरो मे से एक है और दुसरा मंदिर जम्मु कश्मीर मे है ! यह मंदिर बहोत ही पुराना है, इस मंदिर के मुर्तीकी स्थापना महाभारत के रचेता महर्षि व्यास ने की ऐसा कहा जाता है ! उसी तरह वाल्मिकी ऋषी ने भी रामायण लिखने की शुरुवात भी यहा की थी ऐसा दावा किया जाता है ! गोदावरी के मनोहर तट पे बसे इस मंदिर मे लाखो की तादाद मे भक्तजण यहा आते रहते है ! व्यास ऋषी के वास्तव्य से इस गांव का नाम वासर हुआ फिर आगे चल के इसका नाम बासर हुआ ऐसा बताया जाता है !
इस मंदिर की कथा ऐसी बतायी जाती है की कुरुक्षेत्र की लढाई के बाद महर्षी व्यास उनके पुत्र शुक और अन्य ऋषीयोंके साथ शांती के तलाश मे घुमते समय इस दंडकारण्य मे आ गये ! गोदावरी तट का यह परिसर उनको बहुत भा गया और कुछ दिन वह यहा ही रह गये ! तब देवी सरस्वती ने उनके सपने मे आकर यहा लक्ष्मी, शारदा और काली की स्थापना करने का आदेश दिया ! तब व्यास मुनी ने स्नान करने के बाद तीन मुठ्ठी रेत लाकर यहा रच दी और उसमे से ही महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली की मुर्ती तयार हो गयी ! रेत से बनी इस मुर्तीयोंपर फिर हल्दी का लेप चढाया गया ! सरस्वती की मुर्ती चार फिट लंबी है और वह पद्मासन मे विराजमान है !
यहा से थोडी दुरिपर दत्त मंदिर है, ऐसा कहा जाता है यह दोनो मंदिर सुरंग के रास्ते एक दुसरे से जुडी हुई थी और राजामहाराज इस सुरंग के रास्ते आकर भगवान की पुजा करते थे ! यहा महर्षी व्यास का भी मंदिर है तथा वाल्मिकी की संगमरमर की समाधी भी है ! सरस्वती मंदिर मे एक पत्थर का स्तंभ है जिसपे प्रहार करने से संगीत के सप्तसुर सुनाई देते है ! उसे म्युझिक पिलर भी कहा जाता है !
अपने यहा शिक्षा की शुरुवात सरस्वती पुजा से करने की प्रथा है ! इस सरस्वती मंदिर मे कई मातापिता बच्चोंको शिक्षा शुरु करने से पहले लेके आते है उसे अक्षराभिषेक ऐसा कहा जाता है ! यहा प्रसाद मे बच्चोंको हल्दी खिलायी जाती है और शुभमुहर्त पे फलकपर अक्षर लिखने की संथा दी जाती है ! दसेरा, वसंतपंचमी, राखी पुर्णिमा और व्यास पुर्णिमा यानी गुरुपुर्णिमा यह दिन उसके लिए शुभ माने जाते है !
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