दी हिल ऑफ क्रॉसेस, क्रेझिया कल्नास, सियाउलियाई ( शु-ले ) के छोटे औद्योगिक शहर से १२ किलोमीटर की दुरीपर उत्तर मे स्थित है, जो लिथुआनियन राष्ट्रीय तीर्थस्थल केंद्र है ! एक छोटेसे पहाडीपर खडे किये गये यह सेकडो से हजारो क्रॉस इसाई भक्ति का प्रतिनिधित्व करते है और लिथुआनियन राष्ट्रीय पहचान का स्मारक दर्शाते है !
सिआउलियाई शहर को सन १२३६ मे स्थापित किया गया था और १४ वी सदी मे ट्यूटनिक सरदारोने इसपर कब्जा कर लिया था ! इस कार्यकाल के बाद की तारीख रखने की परंपरा या संभवतः पहले विदेशी आक्रमणकारियों की लिथुआनियन अवज्ञा के प्रतीक के रूप में उठी ! मध्यकाल की अवधि के बाद से हिल ऑफ क्रॉसेस ने लिथुआनियन कैथोलिक ईसाईयों के दमन के शांतिपूर्ण प्रतिरोध का प्रतिनिधित्व किया है ! सन १७९५ मे सिआउलियाई को रुस मे शामिल कर दिया गया था मगर सन १९१८ के दशक मे फिर से लिथुआनिया को वापस लौटा दिया गया था ! सन १८३१ से १८६३ मे किसान विद्रोह के बाद कई क्रॉसेस इस पहाडपर खडे कर दिये गये थे ! सन १८९५ तक यहा कम से कम १५० से ज्यादा बडे क्रॉस थे ! सन १९१४ तक २०० से ज्यादा और १९४० तक वहा पर ४०० से ज्यादा बडे क्रॉसेस हजारो से अधिक क्रॉसेस से घिर चुके थे !
दुसरे विश्व युद्ध में जर्मनी ने इस शहर पर कब्जा कर लिया था मगर युद्ध के अंत तक सोवियत रुस इस शहर को वापस लेता तब तक इस शहर को भारी क्षति पहुंच चुकी थी ! सन १९९१ मे लिथुआनिया को आझादी मिली तब तक सन १९४४ से सिआउलियाई लिथुआनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ सोवियत संघ का एक हिस्सा था ! सोवियत युग के दौरान, हिल ऑफ क्रॉस पर तीर्थयात्रा ने लिथुआनियाई राष्ट्रवाद की एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति के रूप में सेवा की ! सोवियत ने लगातार लिथुआनियाई लोगों द्वारा पहाड़ी पर खडे किये गये ईसाई क्रॉसेस को हटा दिया ! तीन बार यानी १९६१, १९७३ और १९७५ इस पहाडी इलाके को समतल यानी सपाट किया गया ! यहांके क्रॉसेस को जलाया गया या उनका रुपांतर स्क्रॅप मेटल मे किया गया और इस इलाके को बेकार और सीवेज जगह मे तब्दील किया गया ! ऐसे प्रत्येक अपवित्र कार्य के बाद स्थानीय निवासियों और लिथुआनिया भर के सभी तीर्थयात्रियों ने तेजी से इस पवित्र पहाड़ी पर क्रॉसेस को फिर से खडा कर दिया ! इस तरह सन १९८५ तक दी हिल ऑफ क्रॉस पर शांती बहाल हो गयी थी ! तब तक इस पवित्र पहाडी की प्रतिष्ठा पुरी दुनिया मे फैल गयी थी और हर साल हजारोंकी तादाद मे तीर्थयात्री यहांकी यात्रा के लिए आने लग गये थे ! सन १९९३ के सितंबर महिने मे पोप जॉन पॉल द्वीतीय ने इस जगह की यात्रा की थी !
क्रॉस के आकार और विविधता उनकी संख्या के रूप में अद्भुत हैं ! खूबसूरती से बाहर से तराशी हुई नक्षी लकडी या धातु पे तैयार की गयी है, क्रॉस की सीमा तीन मीटर लंबाई से अनगिनत छोटे उदाहरणों तक फैली हुई है जो बड़ी दरियादिली से बडी क्रॉसपर लटकाई हुई है ! एक घंटा पवित्र पहाडीपर बिताने के दुनिया भर के ईसाई तीर्थयात्रियोंद्वारा यहा क्रॉस खडे किये है इसकी अनुभुती होती है ! यीशु और संतों की तस्वीरें, और लिथुआनियन देशभक्तों की तस्वीरें भी बड़े क्रॉस को सजाती हैं ! हवा के दिनों में जंगल से बहनेवाली हवा यहा एक विशिष्ट सुंदर संगीत निर्माण करती है !
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