YAMUNOTRI - HIMALAYAS

यमुनोत्री - चारधाम यात्रामेंसे एक महत्वपूर्ण क्षेत्र ( YAMUNOTRI - HIMALAYAS )


YAMUNOTRI, HIMALAYAS


गंगोत्री के बाद यमुनोत्री का नाम आता है ! हिमालय के चारधाम यात्रामेंसे एक महत्वपूर्ण क्षेत्र ! हृशीकेश से उत्तरकाशी आने के बाद वहासे यमुनोत्री के लिये जा सकते है ! उत्तरकाशी – धरासू – यमुनोत्री ऐसा ये मुश्किल सफर है ! हिमालय की यात्रा मुश्किलोंसे भरी है उससे भी यमुनोत्री यात्रा उससे भी असंभव है ! हम यमुनोत्री ऐसा उच्चारण करते है वही उत्तर भारत मे जमुना या जमुनोत्री ऐसा उच्चारण किया जाता है ! समुद्र सतह से इसकी क्षेत्र की उंचाई करीबन ३२०० मीटर की है ! 

बडकोट से करीबन २० किलोमीटर की दुरीपर बसा लाखामंडल जरा तेढा रास्ता करके देखने लायक जगह है ! मुश्किल घाट के रास्ते से गुजरने के बाद पहाडोन्मे कौरव पांडंवोंकी  मुर्तीया दिखाई देती है ! यहांका मंदिर पांडवो ने बनवाया ऐसा कहा जाता है ! मंदिर बहोत ही प्राचीन और दरवाजोंपर बारिक खुदाई काम किया हुआ है ! उसके बाजु मे खुले मे रखा शिवलिंग है जिसे देखकर आश्चर्य होता है ! इस शिवलिंगपर पानी डालते ही वह आईने की तरह पारदर्शी हो जाता है जिसमे आसपास की प्रतिमा ये साफ दिखाई देती है ! वापस लौटते समय दो तीन किलोमीटर पर एक सुरंग का मुख दिखाई देता है ! लाखामंडल इसी जगह पांडवोंको लाक्षागृह मे जलाने की कोशिश की गयी थी और इसी सुरंग से वह बच निकले थे ऐसा कहा जाता है ! 

बडकोट से आगे ब्रम्हखाल नाम का छोटासा गांव या बस्ती है ! यहा जमदग्नी का मंदिर है और यहा कल्पवृक्ष देखने को मिलता है ! संपुर्ण रास्ता पहाडी होने के बावजूद इस गांव के नजीक खेत दिखाई देते है ! जंगल का साथ तो जैसे छुटता ही नही ! उसके बाद आती है हनुमान चट्टी यहा पार्किंग नही की जा सकती इसलिये वाहन सयानचट्टी के यहा पार्क करने पडते है ! वैसे हनुमान चट्टी एक छोटीसी जगह है मगर यमुनोत्री जाने के लिये यहा रह सकते है ! यहा से पांच किलोमीटर की दुरीपर जानकीचट्टी है ! यहा भी रहने का प्रबंध हो सकता है ! हनुमान चट्टी से प्राव्हेट गाडिया आगे नही जा सकती इस वजह से हनुमान चट्टी से जानकीचट्टी जीप से और आगे का सफर पैदल या घोडा, कंडीदंडी, डोली से ऐसा सफर करके यमुनोत्री पहुंचा जा सकता है ! इसके लिये भोर सुबह मे ही निकलना होगा ! जानकीचट्टी से छह किलोमीटर चढ के जाने के बाद यमुना का मंदिर आता है !

यमुनोत्री यह यमुना नदी का उगमस्थान माना जाता है मगर मुख्य उगमस्थान और भी उंचाईपर है ! वहा तक पहुंचना असंभव है ! यमुना मंदिर का निर्माण टेहरी नरेशमहाराज प्रतापशाह ने किया ऐसा कहा जाता है ! काले पत्थर मे खुदाई यमुना की सुंदर मुर्ती है और उसके बाजु मे संगमरमरकी गंगा की मुर्ती है ! मंदिर के बाहर गरम पानी के कुंड है जहा भाक्तजन स्नान करते है ! सुर्यकुंड का पानी तो उबलता हुआ है जिसमे चावल और आलु कपडोन्मे लपेटकर छोडते है जिसमे आलु और चावक पक जाते है ! फिर यही चावल और आलु भक्तोंको प्रसाद के रूप मे दिया जाता है ! यहा रहने की सुविधा नही होने के कारण इस जगह का दर्शन एक दिन मे ही लेके लौटना पडता है ! यहा जाने का रास्ता बहोत ही कठीण और मुश्किलोंसे भरा हुआ है क्योंकी रास्ता सकिर्ण है उसी तरह एक तरफ उंचे उंचे पहाड तो दुसरी तरफ गहरी खाई है इस वजह से जान हथेलीपर लेके चलना पडता है ! इसके साथ साथ यह जगह उंचाईपर होने की वजह से हाई अल्टिट्युड की तकलीफ भी हो सकती है ! 

इस जगह के बारे मे ऐसी कथा सुनायी जाती है की यम की बहन यमुना, भाईदुज के दिन यम यमुना के यहा गये थे तब यमुना ने कहा की लोगोंके प्राण हरन करने का छोड दे, यम यह बात कैसे मान सकता था ? अथा अंत मे उसने यम से भाईदुज के दिन इस काम को ना करने के लिये कहा ! फिर यमुना ने यम से कहा मेरा दर्शन जो करेगा उसको मौत का डर नही होना चाहिये ! यह बात भी यम को राझ नही आयी ये बात मान जाना भी उसके काम मे रुकावट पैदा करने जैसा था फिर कोई भी आके यमुना का दर्शन लेगा ये सब कैसे हो सकता है ! आखिरकार कोई भी आसानी से ना पहुंचे ऐसी जगह पे आके यमुना रहने लगी उस वजह से यम का काम भी चालु रहा और यमुना की मांग भी पुरी हो गयी ! 

हिमालय की ग्लेशियरोंमेंसे उंचे जगहोंसे निकलनेवाला यमुना का प्रवाह काफी जोरदार होता है जिसकी आवाज दुर दुर तक सुनायी देती है ! यमुनोत्री का सफर सफलतापुर्व हो गया तो आगे का सफर भी अच्छे से होता है ऐसा कहा जाता है ! सफर कितना भी असंभव या मुश्कील हो मगर हिमालय की सैर एक बार तो करनी चाहिये ! समृद्ध निसर्ग, बडे छोटे झरने, वॉटरफॉल, कई तरह की सुगंधी फुल, घने जंगल, आसमान छुते लंबे पेड और वहाका की कुदरत मे समाया सुना पन यह सब शब्दोन्मे कैसे बया हो सकता है ! 

No comments:

Post a Comment